उर्दू शायरी में ‘ख़ुशबू’ : 2

तरुण प्रकाश श्रीवास्तव, सीनियर एग्जीक्यूटिव एडीटर-ICN ग्रुप

ख़ुशबू न जाने कितने रंगों, कितने अहसासों, जज़बातों, ख़यालों और यादों को बाँधे रहती है। कई बार तो ये ख़ुशबू हमारी जज़बाती जिस्म की आँख तक बन जाती है और एक अदद ख़ुशबू न जाने ख़यालों में हमें क्या-क्या दिखा जाती है।

 

मुजाहिद फ़राज़ मुरादाबाद, भारत से ताल्लुक रखते हैं। वे एक बेहतरीन शायर हैं और उनका एक दीवान ‘बर्फ़ तपती है’ खासा चर्चित है। देखिये, वे ख़ुशबू के हवाले से क्या फ़रमाते हैं – 

 

“ख़ुशबू ले कर चाहत की, 

बस्ती बस्ती फिरता हूँ।”

 

अशफ़ाक़ असंगानी एक बेहतरीन शायर हैं। वे अपनी बात को बहुत ही करीने से रखने के लिये मशहूर हैं। क्या खूबसूरत शेर कहा है उन्होंने –

 

“खुशबू लपेटे चलती है बाद-ए-सबा यहाँ,

तू क्या गया कि हो गई ज़ालिम भी बेहिजाब।”

 

रउफ़ यासीन जलाली पाकिस्तान में वर्ष 1957 में जन्मे हैं। वे एक‌ मँजे हुये शायर हैं और उन्होंने जो भी कहा है, दिलचस्प कहा है। ख़ुशबू पर उनका एक शेर –

 

“अफ़्कार तेरे हुस्न की जादूगरी सनम,

हर शेर तेरी ज़ुल्फ़ की ख़ुशबू में ढल गया।”

 

यहाँ पर ‘अफ़्कार’ का अर्थ है – चिंता या फ़िक्र।

 

अज़्म बहज़ाद पाकिस्तान में वर्ष 1958 में जन्मे और वर्ष 2011 में उनका इंतकाल हो गया। वे अपने समय के अत्यंत लोकप्रिय शायर थे और उनका एक परिचय यह भी है कि वे उस्ताद शायर बहज़ाद लखनवी के सुपौत्र भी थे अर्थात शायरी उन्हें विरासत में मिली थी। ख़ुशबू पर उनका एक खूबसूरत शेर देखिये – 

 

“आज उस फूल की ख़ुशबू मुझ में पैहम शोर मचाती है,

जिस ने बे-हद उजलत बरती खिलने और मुरझाने में।”

 

यहाँ ‘उजलत’ का अर्थ है – उतावलापन या जल्दबाजी।

 

मोहम्मद ज़फ़र कमाल वास्तव में कमाल के शायर हैं। वे ख़ुशबू और जादू के हवाले से उर्दू तक पहुँचते हैं। उर्दू ज़ुबान की ख़ुशबू तो सारी दुनिया में मशहूर है। वे बड़ी ही खूबसूरती से फ़रमाते हैं –

 

“एक  ख़ुशबू  ने  बॉंध रक्खा है।

एक  जादू  ने  बॉंध   रक्खा  है।।

मैं हूँ लन्दन का आप पैरिस के,

हम को  उर्दू  ने बॉंध  रक्खा है।।”

 

सिराज मंज़र उर्दू शायरी का एक जाना-पहचाना नाम है। वे जो भी फ़रमाते हैं, बहुत असरदार होता है। उनका ख़ुशबू के हवाले से यह शेर ग़ौर फ़रमायें –

 

“महके है यूँ मेरे सनम की ख़ुशबू।

जैसे हो दैरो हरम की ख़ुशबू।।

फूल भी अब तो महक उठ्ठेंगे,

आ रही उनके क़दम की ख़ुशबू।।”

 

वर्ष 1971 में भारतवर्ष के थाने नामक स्थान में जन्मे अमीर हम्ज़ा साकिब उर्दू शायरी के युवा शायरों में एक उभरता हुआ नाम है। वे एक बेहतरीन युवा शायर हैं जो अपनी बात कुछ अपने अलग ही सलीके से कहते हैं। खु़शबू पर उनका एक‌ मशहूर शेर आपके हवाले –

 

“तेरी ख़ुशबू तिरा पैकर है मिरे शेरों में,

जान यूँ ही नहीं ये तर्ज़-ए-मिसाली मेरा।”

 

यहाँ ‘तर्ज़-ए-मिसाली’ का अर्थ है – विशेष शैली।

 

जौनपुर से ताल्लुक रखने वाले युवा शायर आलोक मिश्रा में ग़ज़ब की संभावनाएं हैं। उनकी शायरी उर्दू में वैसी ही है जैसे हिंदी साहित्य में नवगीत। उनके बिंब, प्रतीक व कहन न केवल आधुनिक हैं बल्कि अनूठी भी हैं। आइये, उनसे मिलते हैं उनके ख़ुशबूदार अशआरों के माध्यम से –

 

“जज़्ब कुछ तितलियों के पर में है ।

कैसी ख़ुशबू सी उस कलर में है।।”

 

और एक शेर यह भी –

 

“उन की आमद है गुल-फ़िशानी है ।

रंग-ए-ख़ुशबू की मेज़बानी है।।”

 

यहाँ पर ‘गुल-फ़िशानी’ का अर्थ है – फूल बरसाना।

 

एक अज्ञात शायर का एक बहुत खूबसूरत शेर जह्न में है जो आपसे शेयर कर रहा हूँ। आप भी कहेंगे कि ख़ुशबू पर यह एक बला का हसीन शेर है –

 

“अपने किरदार को मौसम से बचाए रखना ,

लौट कर फूलों में वापस नहीं आती ख़ुशबू।”

 

एक और शेर जो किसी अज्ञात शायर का है, आपसे साझा करनेका मन है जिसमें ख़ुशबू किसी की यादों का नाम है –

 

“सिर्फ ख़ुशबू रही, गुलाब नहीं,

तेरी यादों का भी जवाब नहीं।”

 

अहमद अता एक‌ नौजवान शायर हैं और उनकी‌ यह नौजवानी उनके अशआरों में भी नज़र आती है। उनके शेर यह‌ भी ऐलान‌ करते हैं कि‌ उर्दू शायरी ने अपनी पारंपरिक परिधान के साथ नये फ़ैशन के कपड़े पहनने प्रारंभ कर दिये हैं। कितना खूबसूरत शेर है ख़ुशबू पर –

 

“तुम बने हो बने रहो ख़ुशबू, 

मैं किसी रोज़ ले उड़ूँगा तुम्हें।”

 

नये शायरों में जो नाम इस समय तेज़ी से उभर रहे हैं, उनमें अनुज अब्र का नाम प्रमुखता से लिया जा सकता है। वे न केवल लिखते हैं बल्कि बहुत खूब लिखते हैं। उनके तेवर अलग ही दिखाई देते हैं जो उन्हें भीड़ से अनायास ही अलग कर देते हैं। ख़ुशबू उनका भी प्रिय विषय है। आइये, उनके कुछ अशआर आपसे साझा करते हैं – 

 

“फैला रहे थे इश्क़ की ख़ुश्बू जो दो दरख़्त,

मजबूरियों  की   बाढ़  बहा  ले  गई  उन्हें।”

 

एक शेर यह देखें –

 

“घोल देती है अलग-सा ही नशा रग-रग में,

एक ख़ुशबू जो पसीने से उठा करती है।”

 

और एक यह भी –

 

“उनके बदन की जाय न ख़ुशबू अनुज कभी,

लेते हैं वो निचोड़ लहू भी गुलाब का।”

 

विवेक भटनागर ग़ज़लों की दुनिया में एक स्थापित नाम है। हिंदी साहित्य से ग़ज़लों तक उनका यह सफ़र बहुत खूबसूरत है। वे सादगी के साथ अपनी‌ बात रखते हैं और उनकी यही सादगी उन्हें विशेष बना देती है। उन्हें सुनना-पढ़ना हमेशा अच्छा लगता है। क्या ख़ुशबूदार शेर कहते हैं वे –

 

“कैसीे ये हर्फ़-हर्फ़ में ख़ुशबू सी समाई,

हमने तो बस सफ़े पे तेरा नाम लिखा था।”

 

यह शेर भी कमाल का है –

 

तेरी ख़ुशबू भी तेरे अक्स में आएगी नज़र,

मेरी आंखों की तरफ़ देख ले, दरपन रख दें।”

 

और इसका तो कहना ही क्या –

 

“हमें मुहब्बत है अक्षरों से।

नई किताबों की खुशबुओं से।।”

 

और एक शेर यह भी –

 

“भिगो देता है हमको खुशबुओं का रेशमी झरना,

लटें गालों पे तेरे जब मुसलसल गिरने लगती हैं।”

 

अरविंद ‘असर’ भी हिंदी की बाँह थामे ग़ज़लों के शहर में पहुँचे हैं। अरविंद ‘असर’ के अशआर सीधे दिल पर असर करते हैं। साधारण से साधारण लफ़्ज़ों के माध्यम से गहरी से गहरी बात करने में महारत हासिल है उन्हें । आइये, मिलते हैं उनसे उनके उन अशआरों के माध्यम से जिनमें परिवार की ख़ुशबू है और महबूबा की एक अलग ही महक है – 

 

“ख़ुशबू लुटाते फूल बिंधे हार की तरह।                                             वो दिन गए कि लोग थे परिवार की तरह।।”

 

और एक खूबसूरत शेर यह भी –

 

“रंग, ख़ुशबू से भरी हो जैसे,।            

वो गुलाबों से बनी हो जैसे।।”

 

युवा शायर व गीतकार राज तिवारी‌ मध्यप्रदेश से ताल्लुक रखते हैं और गीतों व ग़ज़लों पर उनकी पकड़ उस्ताद शायरों को भी चौंकाती है। वे जिस नाजुक अंदाज़ में अपने अशआर परोसते हैं, वह अंदाज़ उनका अपना अनोखा ही अंदाज़ है।‌ ख़ुशबू की कुछ अपनी भी फ़िलासफ़ी है जो‌ उनके इस शेर में बयाँ हुई है –

 

“अपनी ख़ुशबू को इस दश्त में बिखराता हूँ सोचता हूँ,

किसको फ़र्क़ पड़ेगा मेरे खिलने से मुरझाने से।”

 

‘दश्त’ का अर्थ है – जंगल।

 

मंजुल मंज़र युवा शायर हैं। मंच कैसे लूटा जाता है, यह हुनर उन्हें बखूबी आता है। वे अपने अशआरों की ख़ुशबू जब बिखेरते हैं तो एक समाँ बन जाता है। लखनऊ से वाबस्ता शायर मंजुल मंज़र ख़ुशबू के हवाले से फ़रमाते हैं –

 

रूह  मरती  ही नहीं जिस्म ये मर जायेगा।

प्यार  ख़ुशबू है  हवाओं में बिखर जायेगा।”

 

एक शेर यह भी देखिये –

 

“ये  कोई  राज़  नहीं  है  दिलों की ख़ुशबू है,

भला  छुपी  है   मुहब्बत  कभी  छुपाने से।”

 

और एक शेर यह भी –

 

“अगर मैं गुल हूँ  तू ख़ुशबू के जैसी है निहां मुझमें,

ये  संजीदा  हक़ीक़त है  फ़साना मत समझ लेना।”

 

अमिताभ दीक्षित कई कलाओं के सिद्धहस्त फ़नकार हैं। वे साहित्य, संगीत व कला के अद्भुत संगम हैं। उनकी‌ तरह उनके अशआर भी अद्भुत हैं। ख़शबू के बारे में वे फ़रमाते हैं – 

 

“अब भी लगता है वही ख़ुशबू है,     

वो तो कब का गुज़र गया यारों।”

 

और उनकी एक नज़्म की कुछ खूबसूरत पंक्तियाँ –

 

“बहुत याद आते हैं गुज़रे जमाने।

वो बीती हुई जिन्दगी के फसाने।।

मचलते महकते दिनों की वो बातें।

वो ख़ुशबू के सुर में लरजती सी रातें।।

वो बंसी की धुन में गाती हवायें।

वो बचपन की मस्ती वो मौजें फिजायें ।।

हैं कानों में बजती वो लोरी की ताने।।

बहुत याद आते हैं गुज़रे ज़माने।।”

 

राजेंद्र वर्मा लखनऊ से वाबस्ता हैं और विभिन्न विधाओं में साधिकार अपनी कलम चलाते हैं। गीत, दोहे, व्यंग्य के साथ उनकी ग़ज़लों का भी दीवान प्रकाशित हो चुका है। छोटी बह्र में बड़ी बात कहना उनकी खूबी है। ख़ुशबू पर किस अंदाज़ से गुफ़्तगू करते हैं, ज़रा देखिये तो –

 

साँझ लायी तेरी ख़ुशबुएँ,

ख़ुशबुएँ दे गयीं रतजगा ।”

 

ख़ुशबू एक ऐसा विषय है जिस पर सारी उम्र बात की जा सकती है। यह महकना भी जानती है और महकाना भी। दुनिया के हर फ़साने की अपनी ख़ुशबू है लेकिन मोहब्बत व महबूब की ख़ुशबू तो बहुत दूर से अपनी‌ आमद दर्ज कराती हेै। चलते-चलते एक-दो शेर अपने भी इसी ख़ुशबू के नाम –

 

वो बहुत चाहता था छिप जाये,

उसकी ख़ुशबू ने मुखबरी कर दी।

 

और एक यह शेर –

 

उसने सोचा था मेरे बारे में,

एक ख़ुशबू तमाम रात आयी।

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